न लेता… न देता… काहे का नेता..?

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rohit

हमारे एक पेचान वाले भिया नेता हैं… चुनाव में उनको कोई पाल्टी टिकिट दे, या न दे वो निर्दलीय ही खड़े हो जाते हैं, अन्य पार्टियों की जमी-जमाई ‘दुकान’ बिगाडऩे के लिए… आखिर भिया का भी अपना एक अलग ही वोट बैंक जो है… भिया ‘थोबड़े वाली किताब’ यानी फेसबुक-वाटसप पर दिन-रात ऑनलाइन तो रेते ही हैं, साथ ही ‘दिखावटी मदद’ के लिए भी हमेशा तैयार रहते हैं… भिया की एक बात ये भी है कि उनका ‘खून मीठा’ है जिस वजह से उनके ‘मच्छर भी मुरीद’ हैं…   लेकिन अब भिया को ये सेन नी होता कि कोई उनका ‘खून चूसे’… इसलिए वो अपने शरीर पर मच्छर भगाने वाला टियूब मतलब ओडोमोस लगाते हैं… भिया के ऐसा करने से मच्छर ‘खजवा’ जाते हैं और इसका ‘गुस्सा’ वो क्षेत्र की जनता पर निकालते हैं… इसका रिजल्ट ये होता है कि क्षेत्र में डेंगू-मलेरिया जैसी बीमारी पनपती है..! हालांकि इसके लिए सिर्फ भिया ही जिम्मेदार थोड़ी है… दूसरी बात ये कि क्षेत्र का कोई भला आदमी उनके पास समस्या ले के जाए और उनसे बोले कि भिया हमारी गली में फलां दिक्कत हो री है… तो भिया तपाक से जवाब देते हैं कि और देओ उस ‘जमनादास’ को वोट… मैं क्या करूं, मैं तो ‘कटे हाथ का ठाकुर’ हूं..! वो भला आदमी मन में सोचते हुए चुपचाप उठकर निकल लेता है कि तुम होते भी तो क्या ‘उखाड़’ लेते..? भिया बरसात  में अलग ही कारनामा करते हैं… रातभर की तेज झमाझम के बीच तो भिया ‘आउट ऑफ कवरेज’ रहते हैं, लेकिन सुबह होते ही वे अपने पट्ठों से पता करवाते हैं कि कौन-सी गली में सबसे ज्यादा पानी भरा है और ड्रेनेज कहां चौक है… पट्ठे पता करके भिया को पूरी ‘झांकी मंडप’ के साथ गुप्ता जी की गली में ले के जाते हैं… गली का दृश्य कुछ यूं रहता है कि पूरी गली और घरों में इत्ता पानी भरा कि आप वहां नाव चलवा दो… इधर भिया अपने पट्ठों सहित आधी-आधी पेंट ऊपर चढ़ाकर फेसबुक पर लाइव वीडियो दिखाते हुए ऐसे एंकरिंग करते हैं मानों भिया के अंदर किसी ‘रिपोर्टर की आत्मा’ घुस गई हो… भिया लाइव वीडियो में बताते हैं कि गौर से देखिए इस गली को… सड़कें तालाबों में तब्दील हो चुकी हैं… लोगों के घरों में पानी इस कदर घुस चुका है कि उनका पलंग पर बिछा बिस्तर तक सूखा नहीं रहा… ये सब नजारा लोग अपने-अपने घरों की टान, पलंग वगैरह पर बैठे-बैठे गुस्से से देखते रहते हैं… भिया लोगों के ‘थोबड़े को भांप’ जाते हैं और पास ही खड़े अपने पट्ठे से बोलते हैं लगा उस निगम वाले को फोन… बुलाता हूं उसको, सो रहे हैं क्या सब के सब… भिया पहले चार बातें उसको सुना देते हैं फिर लोगों के घरों में झांक-झांक के कहते हैं इस बार आने दो चुनाव… आप सब मेरा साथ देना… मेरे चुनाव जीतते ही ऐसी समस्याएं ऐसे गायब करूंगा जैसे ‘गधे के सिर से सींग’ गायब हो गए हों… इतना सुनते ही एक घर के अंदर से ‘ग्यारसी बाई’ नामक वृद्ध महिला की आवाज आती है… ‘वा रे मेरे जादूगर!’ भिया की इस तरह की ‘दिखावटी सक्रियता’ से परेशान ‘पाल्टियों के नेता’ उनसे एक दिन ‘गुप्त मीटिंग’ करते हैं… भिया ये तुम्हारी नेतागिरी बंद करो यार..! ‘खाओ और खाने दो…’ तुम्हारी कीमत ‘लेते’ रहो… हमारा साथ ‘देते’ रहो… पर भिया तो भिया ठहरे… वो बोले – नी मेको तो पार्टी में लो और ‘जमनादास की जगह’ दो… पाल्टी वाले नेताओं ने कहा – देखो आप पार्टी से तो वैसे ही जुड़े हो, पर आप खुद ही टिकट के चक्कर में हमसे ‘कट’ जाते हो… निर्दलीय खड़े हो जाते हो… मतलब क्या निकलता है… हमारे वोट अलग काटते हो… खुद भी जीत नी पाते हो… पर भिया नी माने और उठके चल दिए… उस मीटिंग में सभी नेता एक-दूसरे से कहने लगे… न ‘लेता’… न ‘देता’… काहे का नेता..!

 

(इस लेख को सिर्फ `काल्पनिक व्यंग्य के रूप में ही पढ़ा जाए। इसका किसी व्यक्ति विशेष से कोई लेना-देना नहीं है।)

 #रोहित पचोरिया ‘इंदौरी’

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