तुम्हारी नीली आंखें
कभी कभी मुझको लगती है
उस असीम नीले आसमान की तरह
जो अक्सर मुझे
अपनी आगोश में ले लेती हैं
तुम्हारी नीली आंखें
कभी कभी मुझको लगती है
इस अगाध नीले समंदर की तरह
जिनकी लहरों पर छितराता रहता हूँ मैं
ये आंखें आसमान है या नीला समंदर
मैं अब तक समझ नहीं पाया
कभी पंछियों की तरह
आसमान में उड़ता रहता हूँ ,
तो कभी इस समंदर की
अतल गहराइयों में चला जाता हूँ
जहां से मुझे खुद का भी
कोई पता नहीं मिलता
मेरे भीतर न जाने कितने पंछी हैं
जो तुम्हारे आकाश में विचरते हैं
मेरे भीतर न जाने कितनी नदियां हैं
जो तुम्हारे समंदर में जाकर समा जाती हैं
कभी भी वापस बाहर ना निकलने के लिए !
#राजीव थेपड़ा
राँची (झारखण्ड)