खा रहे हैं पाप धन की जो मलाई, क्या करेंगे जिन्दगी में वो भलाई। चाटुकारी कान भरना काम इनका, इनने ही तो देश की जनता सताई। तुम भी खाओ-हम भी खाएं देश का धन, कौन दे ईमान की घर-घर सफाई। पश्चिमी सोचें अभी तक क्यों हैं जिन्दा, जिसकी खातिर जान […]
काव्यभाषा
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