वक़्त बिताया करो सपनों के आस-पास सपनें सजाओ खुली आँखों के आस-पास तुम्हें ज़िंदगी का मक़सद समझना पड़ेगा ज़माने में जो आए हो अदब के आस-पास चलकर देख कौन पथ से विचलित होता है चिड़िया भी जीती है उड़ान के आस-पास समझ न पाते हम अपना निशाना कहां पर है ज़िंदगी रह जाती है चूक के आस-पास जिस मासूमियत ने मुझे बादल बना दिया ज़ुल्फ़ें लहराते नहीं घटाओं के आस-पास क्या होगा सजदे में ख़ुद को गुज़ार देने से हमने रहा नहीं कभी आँसुओं के आस-पास जीते तो बहुत से जीव हैं मेरे ज़माने में तुम ही सिर्फ़ जा सकते खुदा के आस-पास मत चाहो हरियाली कहीं बोने के बग़ैर भी ख़ून-पसीना बहाना होता है खेतों के आस-पास इतना तो समझ ले ज़िंदगी सँवर जाएगी बच्चे बिखर सकते नहीं बुजुर्गों के आस-पास बड़ी मशक़्क़त से मिलती है मंज़िल ‘राजीव’ बैठे मत रहना हाथ की लकीर के आस-पास #राजीव कुमार दास हज़ारीबाग़ झारखंड Post Views: 375