जाने क्यों अब चाँद बातें नहीं करता। रहता है चुप.. ताकता टुकर टुकर .. नाराज, निराश, न न.. निस्पृह केवल! बहुतेरे हैं उसे देख कर लिखने वाले.. उसमें जाने क्या-क्या देख पाने वाले… डाकिए का कार्य छोड़े जमाना हुआ.. शायद व्यवहारिक हो गया है यह भी! नाजुक से फसानें और […]