●जयराम शुक्ल मनुष्य चाहे दुर्जन हो या सज्जन, सत्य हमेशा उसकी आँखों में भटकटैया की भाँति गड़ता है। स्तुति देवताओं को भी पसंद थी और दानवों को भी। यहां नेता भी स्तुतिजीवी है और खलनेता भी। इसलिए वहां देवर्षि नारद देव-दानवों को खटकते थे और यहां पत्रकार किसी को नहीं […]
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अर्पण जैन ‘अविचल’ ये उँची-लंबी, विशालकाय बहुमंज़िला इमारते, सरपट दौड़ती-भागती गाड़ीयाँ, सुंदरता का दुशाला औड़े चकमक सड़के, बेवजह तनाव से जकड़ी जिंदगी, चौपालों से ज़्यादा क्लबों की भर्ती, पान टपरी की बजाए मोबाइल से सनसनाती सभ्यता, धोती-कुर्ते पर शरमाती और जींस पर इठलाती जवानी, मनुष्यता को चिड़ाती व्यवहारशीलता, मेंल-ईमेंल में […]