वह रोज जी उठता है,पुनर्नवा की तरह। जी उठना उसकी विवशता है, क्योंकि सहज मिल जाती है, हवा,बारिश,धूप और पानी भी कभी-कभी। फिर वह पनपता,फुनगता और बढ़ता ही चला जाता है। पर इतना भी सहज नहीं है बढ़ना! इस बीच कई बार पददलित होता, रौंदा जाता हजारों बार,पांवों तले, फिर […]