जलियांवाला बाग

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जिस दिन सारे हिंदू, सिख, पठान चले।
चुनकर वतन परस्ती की राह चले।।
दिलों में लेकर इंसाफ़ की आस चले।
भारत के वीर जवान चले।।
छोड़ अपने घर संसार चले।।
उनके भी अपने सपने थे।
उनके भी प्यारे अपने थे।।
उनको भी कहाँ मालूम यह था,
कि यह सफ़र आखिरी सफ़र होगा।।
यह ख़ूबसूरत बाग यह मंज़र दिखलाएगा।
अपने साथियों की लाशों से भर जाएगा।।
तेरह अप्रैल को शाम पांच बजे
यह बिन बोला खंजर होगा।
न किसी का आना, न किसी का जाना होगा।
बस क्रूरता का ताना-बाना होगा।।
देखो अपने तो वीर जवान चले।
फिर कभी घर ना लौट सकेंगे, दुश्मन के ऐसे मंसूबों से अनजान चले।।
अब तो हमको बस याद रखना उनकी कुर्बानी होगा।
दुश्मनों के इरादों से देश को बचाना होगा।।
कोई बाग अब जलियांवाला बाग न बन पाए।
इतना सरहद पर पहरा बढ़ाना होगा।।

#ऋचा दिनेश तिवारी,
देवास, मध्यप्रदेश

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