बंबई के मुंबई बनने तक बहुत कुछ बदला …

0 0
Read Time6 Minute, 7 Second
tarkesh ojha
tarkesh ojha


तारकेश कुमार ओझा
बंबई के मुंबई बनने के रास्ते शायद इतने जटिल और घुमावदार नहीं होंगे जितनी मुश्किल मेरी दूसरी मुंबई यात्रा रही ….महज 11 साल का था जब पिताजी की अंगुली पकड़ कर एक दिन अचानक बंबई पहुंच गया …विशाल बंबई की गोद में पहुंच कर मैं हैरान था क्योंकि तब बंबई किंवदंती की तरह थी ….ना जाने कितने गाने – तराने , गीत , संगीत , मुहावरे कहावतें बंबई पर आधारित होती थी … तकरीबन हर फिल्म में किसी न किसी रूप में बंबई का जिक्र होता ही था ….क्योंकि फिल्मी दुनिया के वो तमाम किरदार मुंबई मैं ही रहते थे , जो जूता पालिस करते हुए पलक झपकते मुकद्दर का सिकंदर बन जाते थे . उनके करिश्माई करतब को आंखे फाड़ कर देखने वाली तब की जवान हो रही साधारणतः टीन की छत और मिट्टी की दीवार वाले घरों में रहती थी . हालांकि तब भी मुंबई की अट्टालिकाएं देखने मैं सिर की टोपी गिर जाया करती थी .
हाल में दूसरी जब दूसरी मुंबई यात्रा का संयोग बना तब तक जीवन के चार दशकों का पहिया घूम चुका था …. बंबई – मुंबई हो गई …बचपन में की गई मुंबई की यात्रा की यादें मन में बेचैन हिलोरे पैदा करती ….लेकिन फिर कभी मुंबई जाने का अवसर नहीं मिल सका …. कोल्हू के बैल की तरह जीवन संघर्ष की परिधि में गोल गोल घूमते रहना ही मेरी नियति बन चुकी थी …कुछ साल पहले भतीजे की शादी में जाने का अवसर मुझे मिला था … लेकिन आकस्मिक परिस्थितियों के चलते अवसर का यह कैच हाथ से छूट गया ….इस बीच कि मेरी ज्यादातर यात्रा उत्तर प्रदेश के अपने पैतृक गांव या कोलकाता – जमशेदपुर तक सीमित रही , बीच में एक बार नागपुर के पास वर्धा जाने का अवसर जरूर मिला लेकिन मुंबई मुझसे दूर ही रही , लेकिन कहते हैं ना यात्राओं के भी अपने संयोग होते हैं , हाल में एक नितांत पारिवारिक कार्यक्रम में मुंबई जाने का अवसर मिला , बदली परिस्थितियों में तय हो गया कि इस बार मुझे मुंबई जाने से कोई नहीं रोक सकता , ट्रेन में रिजर्वेशन , अंजान मुंबई की विशालता , लोकल ट्रेनों की भारी भीड़भाड़ के बीच गंतव्य तक पहुंचने की की चुनौतियां अपनी जगह थी लेकिन बेटे बेटियों ने जिद पूर्वक एसी में आने जाने का रिजर्वेशन करा कर मेरी संभावित यात्रा को सुगम बना दिया …
रही सही कमी अपनों के लगातार मार्ग निर्देशन और सहयोग ने पूरी कर दी , इससे मुंबई की विशालता के प्रति मन में बनी घबराहट काफी हद तक कम हो गई .
जीवन में पहली बार वातानुकूलित डिब्बे में सफर करते हुए मैं पहले दादर और फिर बोईसर आराम से पहुंच गया , पारिवारिक कार्यक्रम में शिरकत की .
मुंबई में कुछ दिन गुजारने के दौरान मैने यहां की लोकल ट्रेनों में भीड़ की विकट समस्या को नजदीक और गहराई से महसूस किया.
भ्रमण के दौरान बांद्रा कोर्ट के अधिवक्ता व समाजसेवी प्रदीप मिश्रा के सहयोग से विरार स्थित पहाड़ पर जीवदानी माता के दर्शन किए . करीब 700 सीढ़ियां चढ़कर हम माता के दरबार पहुंचे और आनंद पूर्वक दर्शन किया . इससे हमें असीम मानसिक शांति मिली . अच्छी बात यह लगी कि हजारों की भीड़ के बावजूद दलाल या पंडा वगैरह का आतंक कहीं नजर नहीं आया . दर्शन की समूची प्रक्रिया बेहद अनुशासित और सुव्यवस्थित तरीके से संपन्न हो रही थी .
कुछ ऐसी ही अनुभूति मुंबा देवी और महालक्ष्मी मंदिर के दर्शन के दौरान भी हुए . जिन विख्यात मंदिरों की चर्चा बचपन से सुनता आ रहा था वहां दूर दूर तक आडंबर का कोई नामो निशान नहीं , कोई मध्यस्थ वहीं , सीधे मंदिर पहुंचिऐ और दर्शन कीजिये . स्थानीय लोगों ने बताया कि मुंबई क्या पूरे महाराष्ट्र की यह खासियत है .मुझे लगा कि यह सुविधा समूचे देश में होनी चाहिए .

क्योंकि इस मामले में मेरा अनुभव कोई सुखद नहीं है . मुंबई के प्रसिद्ध व्यंजनों का स्वाद लेने की भी भरसक कोशिश की और यात्रा समाप्त कर अपने शहर लौट आया .अलबत्ता यह महसूस जरूर किया कि अपनो की मदद के बगैर अंजान और विशाल मुंबई की मेरी यह यात्रा काफी दुरूह हो सकती थी .

#तारकेश कुमार ओझा

लेखक पश्चिम बंगाल के खड़गपुर में रहते हैं और वरिष्ठ पत्रकार हैं | तारकेश कुमार ओझा का निवास  भगवानपुर(खड़गपुर,जिला पश्चिम मेदिनीपुर) में है |

matruadmin

Next Post

क्या आप असली होली का आनन्द टीवी पर लेते हैं?

Sat Mar 7 , 2020
#इंदु भूषण बाली Post Views: 227

पसंदीदा साहित्य

संस्थापक एवं सम्पादक

डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।