Read Time2 Minute, 32 Second
बुझे दीपक से ज्योति माँगने कब कौन आता है
निशा घनघोर है चहुँ ओर
दिखाई कुछ नहीं देता
पथिक किस मार्ग पर जाएँ
सुझाई कुछ नहीं देता
निराशा व्याप्त है उर में
काल अश्रु बहाता है
बुझे दीपक से ज्योति माँगने कब कौन आता है
वंश-कुल, मान व संस्कार
की प्राचीरें ऊँची हैं
हर वैदेही के सम्मुख
हमने रेखाएँ खींची हैं
आज हर राम के भीतर
दशानन शीश उठाता है
बुझे दीपक से ज्योति माँगने कब कौन आता है
सहे मैंने युगांतर से
संसृति के घात-आघात
प्राण तो हर लिए तुमने
शेष केवल रहा श्लथ-गात
श्वासों का आरोह-अवरोह
जुगुप्सा ही जगाता है
बुझे दीपक से ज्योति माँगने कब कौन आता है
स्वार्थ की आँधी में घिरकर
कलुषित हुआ निष्कपट स्नेह
व्यंग्य के बाणों से बिंधकर
पंकिल हुई धवल सी देह
आशा का नन्हा-सा खग
विवशता से छटपटाता है
बुझे दीपक से ज्योति माँगने कब कौन आता है
भरत मल्होत्रा
परिचय :-
नाम- भरत मल्होत्रा
मुंबई(महाराष्ट्र)
शैक्षणिक योग्यता – स्नातक
वर्तमान व्यवसाय – व्यवसायी
साहित्यिक उपलब्धियां – देश व विदेश(कनाडा) के प्रतिष्ठित समाचार पत्रों , व पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित
सम्मान – ग्वालियर साहित्य कला परिषद् द्वारा “दीपशिखा सम्मान”, “शब्द कलश सम्मान”, “काव्य साहित्य सरताज”, “संपादक शिरोमणि”
झांसी से प्रकाशित “जय विजय” पत्रिका द्वारा ” उत्कृष्ट साहितय सेवा रचनाकार” सम्मान एव
दिल्ली के भाषा सहोदरी द्वारा सम्मानित, दिल्ली के कवि हम-तुम टीम द्वारा ” शब्द अनुराग सम्मान” व ” शब्द गंगा सम्मान” द्वारा सम्मानित
प्रकाशित पुस्तकें- सहोदरी सोपान
दीपशिखा
शब्दकलश
शब्द अनुराग
शब्द गंगा
Post Views:
491
Mon Oct 29 , 2018
संस्कृत,संस्कृति,संस्कार कराते भारत का सत्कार धरोहर यही है भारत की पहचान यही है भारत की उन्नति का आधार यही है नैतिकता का प्रमाण यही है दुनिया इसी से भरोसा करती हमको अपने से आगे रखती फिर क्यों भूल रहे है इनको अंग्रेजियत क्यों भा रही सबको भारतीयता के रंग में […]