गले कैसे मिलें भैया, जब पेट हो गए मोटे। फोकट में दिल्ली लूटे, जो सिक्के हैं खोटे। सारे रिश्ते नाते हो गए, आज के माहौल में छोटे। अपराधी मौज कर रहे, फरियादी खा रहे हैं सोटे। रंग लगाने किसको जाएं, लगाने से पहले हम सोचें। नवरंगी हो हमारा हर पल, […]
बहुत-सी बातें कहती दिनभर, फिर भी अनकही सी रह जाती.. गृहस्थी की चिंगारियों को अपने आंचल से ढँककर छुपाती, खुद अस्त-व्यस्त होकर भी.. सबकी जिंदगी मे रंग भरती.. अंदर-ही-अंदर धधकती, मुंह पर झूठी मुस्कान बिखेरती.. ये सुप्त ज्वालामुखी-सी औरतें….। लीपे-पुते चेहरे से झाँकती, उदासी की लकीरें दबा नहीं पाती.. प्याले […]
