इधर नकलची उधर नकलची, नहीं हैं बोलो किधर नकलची? कवि ख़ुद को वह लिखते लेकिन, हैं सचमुच वे कुधर नकलची मंचों पर सम्मान मिले तो, हँसें खोलकर अधर नकलची! बड़े-बड़े सँग देते उनका, कैसे पाएँ सुधर नकलची! ‘सरस’ न इच्छा हो जाने की, बैठें खुश हो जिधर नकलची! जीवनवृत *सतीश […]