हे! काग विहग ‘व्यथा ऊर्मिले’ आज तुम्हीं से कहती हूं… अंखियां प्रियतम ढूंढ रही है विरह में बरबस बहती हूं..। मेरे प्रियतम छोड़ गए हैं.. अश्रु भी ना बहा सकूं.. योगिनी गर में बन जाऊं… क्या मर्यादा का त्याग करूं..? पुत्रवधू हूं कौशल की मैं विरह कथा यें कहती हूं.. […]