दोहा पुरूष पिता राजा बनें, परम पिता परमेश। पुरुष सृजन सृष्टि करें नशते सभी क्लेश।।    पिता-चालीसा    (चौपाई छंद)              १ पिता रुप मे महिमा भारी। निशदिन गाती सृष्टि सारी।।                  २ परम पिता परमेश्वर कहते। सबके […]

घनघोर तिमिर चहुँ ओर या हो फिर मचा हाहाकार कर्मो का फल दुखदायी या फिर ग्रहों का अत्याचार प्रतिकूल हो जाता अनुकूल लेकर बस आपका नाम आदि पुरुष, आदीश जिन आपको बारम्बार प्रणाम॥१॥ आता जाता रहता सुख का पल और दुःख का कोड़ा दीन-दुखी मन से, कर्मो ने जिसको कही […]

दोस्तों आज मुझे बहुत ही गहराएहसास हुआ एक इंसान कीमातृभक्ति  का कैसे वो अपनीबूढ़ी माँ की सेवा करता है /साथियो कुछ करो कितने भीदयालू बनो , दान धर्म करो , परन्तु यदि वो इंसान अपनेमाता पिता की सेवा या उनकाआदर नहीं करता तो वो कभीभी सुखी नहीं रह सकता / कहते की इंसान कितने ही जन्मक्यों न ले परन्तु माता का कर्जवो कभी भी नहीं उतार सकताहै /यदि माँ घर में सुखी है तो वोघर अपने आप ही मंदिर बनजाता है/ क्योकि माँ सदा हीअपने परिवार और बच्चो केलिए कितनी प्रार्थना और व्रतऔर धार्मिक अनुष्ठान निरंतरकरती रहती है / किसके केलिए ? स्वंय के लिए क्या , नहींवो सब अपने बच्चो औरपरिवार के लिए ही कठिन सेकठिन साधना करती है / जिनघरो में माता पिता का सम्मानया उनकी उपेक्षा की जाती हैआप उन परिवारों का माहौलदेखना ? माना की उनके पासपैसे बहुत होंगे परन्तु में दावे सेकहा सकता हूँ की उनके घरो मेंशांति नहीं होगी / घर कामाहौल कुछ अलग ही होगा।संस्कार बच्चो में नहीं होंगे / सिर्फ पैसा होगा / परन्तुमानसिकता ठीक नहीं होगी / दोस्तों अपनी बात को समझनेके लिए एक छोटी सी कहानीका सहारा लेता हूँ / में कलबाज़ार में फल खरीदने गया, तोदेखा कि एक फल के ठेले पर   एक छोटा सा बोर्ड लटक रहाथा, उस पर मोटे अक्षरों सेलिखा हुआ था… “घर मे कोई नहीं है, मेरी बूढ़ी माँबीमार है, मुझे थोड़ी थोड़ी देर मेंउन्हें खाना, दवा और टॉयलटकराने के लिए घर जाना पड़ताहै, अगर आपको जल्दी है तोअपनी मर्ज़ी से फल तौल लें, रेटसाथ में लिखे हैं। पैसे कोने पर गत्ते के नीचे रखदें, धन्यवाद!!” मुझे देखकरपहले तो बहुत ही हैरानी हुई कीइस तरह से दुकान खोलकरबोर्ड लगा दिया वो भी आज केज़माने में जहाँ हर इंसान एकदूसरे को लौटने के लिए तैयाररहता है / साथ ही एक लाइन और भीलिखी थी और उन लाइन ने मेरादिल जीत लिया “अगर आपकेपास पैसे नहीं हो तो मेरी तरफसे ले लेना, इजाज़त है.”.!! इसीलाइन के कारण मुझे लगा कीकी भी उसकी दुकान से चोरीनहीं कर रहा है / क्योकि वोखुद ही बोल रहा है की ले लोबिना पैसे के / दोस्तों कितनाभी बड़ा लूटेरा हो , यदि कोईइंसान उससे कहाँ की ले जाओमाल जो आपको ले जाना है , तो निश्चित ही वो लूटेरा एकपैसा लौटकर नहीं ले जायेगा / मुझे भी फल लेना था तो मैंनेइधर उधर देखा, पास पड़े तराजूमें दो किलो सेब तोले दर्जन भरकेले लिये, बैग में डाले, प्राइसलिस्ट से कीमत देखी, पैसेनिकाल कर गत्ते को उठाया, वहाँ सौ-पचास और दस-दस केनोट पड़े थे, मैंने भी पैसे उसमेंरख कर उसे ढंक दिया। मन ही मन सोचा और बैगउठाया और अपने फ्लैट पे आगया, परन्तु जो मैंने आज देखावो दृश्य मेरे दिलो दिमाग से नहींनिकल रहा था / रात को खानाखाने के बाद मैं उधर से निकला, तो देखा एक कमज़ोर साआदमी, दाढ़ी आधी कालीआधी सफेद, मैले से कुर्ते पजामेमें ठेले को धक्का लगा कर बसजाने ही वाला था, की वो मुझेदेखकर मुस्कुराया और बोला”साहब  आज तो फल तो खत्महो गए।” मैंने बोलै कोई बातनहीं / मैंने पूछा की आपकाक्या नाम है तो बोला जीसीताराम, और कुछ चलतेचलते बात करते रहे / फिर हम सामने वाले ढाबे परबैठ गए। मैंने चाय मँगाई, वोकहने लगा, “पिछले तीन सालसे मेरी माता बिस्तर पर हैं, कुछपागल सी भी हो गईं है औरअब तो फ़ालिज भी हो गया है, मेरी कोई संतान नहीं है, बीवीमर गयी है, सिर्फ मैं हूँ और मेरीमाँ..! माँ की देखभाल करने वालाकोई नहीं है, इसलिए मुझे ही हरवक़्त माँ का ख्याल रखनापड़ता है / और उसके पास बारबार जाना पड़ता है / बाबूजी एक दिन मैंने माँ के पाँवदबाते हुए बड़ी नरमी से कहा, “..माँ!! तेरी सेवा करने को तोबड़ा जी चाहता है पर जेबखाली है और तू मुझे कमरे सेबाहर निकलने नहीं देती, कहतीहै, तू जाता है तो जी घबरानेलगता है, तू ही बता मै क्याकरूँ?” न ही मेरे पास कोई जमापूंजी है।.. ये सुन कर माँ नेहाँफते-काँपते उठने की कोशिशकी। मैंने तकिये की टेकलगवाई, उन्होंने झुर्रियों वालाचेहरा उठाया अपने कमज़ोरहाथों को ऊपर उठाया, मन हीमन राम जी की स्तुति की फिरबोली.. “तू ठेला वहीं छोड़ आयाकर, हमारी किस्मत का हमें जोकुछ भी है, इसी कमरे में बैठकरमिलेगा।” मैंने कहा, “माँ क्याबात करती हो, वहाँ छोड़आऊँगा तो कोई चोर उचक्कासब कुछ ले जायेगा, आजकलकौन लिहाज़ करता है? औरबिना मालिक के कौन फलखरीदने आएगा?” कहने लगीं.. “तू राम का नामलेने के बाद बाद ठेला को फलोंसे भरकर छोड़ कर आजा बस, ज्यादा बक-बक नहीं कर, शामको खाली ठेला ले आया कर, अगर तेरा रुपया गया तो मुझेबोलना समझा बाबूजी ढाई साल हो गए हैं ,सुबह ठेला लगा आता हूँ …शामको ले जाता हूँ, लोग पैसे रखजाते हैं.. और फल ले जाते हैं, एक धेला भी ऊपर नीचे नहींहोता, बल्कि कुछ तो ज्यादा भीरख जाते हैं, कभी कोई माँ केलिए फूल रख जाता है, कभीकोई और चीज़!! ” परसों एकबच्ची पुलाव बना कर रख गयी,साथ में एक पर्ची भी थी “अम्माके लिए!” एक डॉक्टर अपना कार्ड छोड़गए पीछे लिखा था, ‘माँ कीतबियत नाज़ुक हो तो मुझे कॉलकर लेना, मैं आ जाऊँगा, कोईख़जूर रख जाता है, रोजानाकुछ न कुछ मेरे हक के साथमौजूद होता है। न माँ हिलनेदेती है न मेरे राम कुछ कमीरहने देते हैं, माँ कहती है, तेरेफल मेरा राम अपने फरिश्तों सेबिकवा देता है। दोस्तों माँ बापक्या कुछ नहीं करते अपनेबच्चो के लिए और आज केज़माने में बहुत कम लोग अपनेमाँ बाप को वो स्थान देते है / जिनके बो असली हक़दार है / माँ की वाणी में वो सत्य औरआशीर्वाद छुपा होता है जिसकबच को कोई भी नहीं छेदसकता है / फल वाले कोअपनी मां के प्रति पूरा सम्मानऔर सेवा भाव था तो किसतरह उसकी दुकान को स्वंयपरमात्मा ने चलाकर उसेस्वाभिलाम्बी बनाकर जो मृतसेवा करवाई है वो अपने आपमें एक मिसाल है / यदि आपकेभाव सेवा के है तो परमात्मा भीआपकी मदद करता है आखिर में, इतना ही कहूँगा कीअपने मां -बाप की सेवा करो,और देखो दुनिया कीकामयाबियाँ कैसे हमारे कदमचूमती हैं।           #संजय जैन परिचय : संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं पर रहने वाले बीना (मध्यप्रदेश) के ही हैं। करीब 24 वर्ष से बम्बई में […]

दिलो की बात दिलवाले जानते है / प्यार का दर्द सिर्फ परवाने जानते है / दो जवां दिलो का गम दूरियां समझती है …। कौन याद् करता है हिचकियां समझती है…।1। जब भी एक को दर्द या गम होता है / जलना तो दोनों को ही पड़ता है / तभी […]

घमंड के कारण अच्छे अच्छे पंडितो और विध्दमान लोग अपना  सर्व नाश कर लेते है / जैसे की आज कल के लोगो में घमंड बहुत  भरा हुआ है / वो थोड़े से पैसे वाले या उच्च्य पदो पर क्या आसीन होते है की स्वंय को भगवान समझने लगते है / […]

  सहज, सौम्य और सरल जिनका मिजाज है, सबकुछ होते हुए भी फकीराना ठाठ, आजा़द पंछी की तरह गगन को नापना, मजाक और मस्ती की दुनिया से कविता खोजने वाले, अल्हड़ और मनमौजीपन में जिन्दादिली से जीने वाला, कविता लिखने के लिए केवल मुठ्ठी उठा कर नभ को पात्र भेजने […]

संस्थापक एवं सम्पादक

डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।