चोला

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किसी का दर्द दिखता है
किसीका दर्द नहीं दिखता।
जुबा से ही हमें उनका
दर्द समझ आ जाता है।
मगर दिलको हम कैसे
मनाये समझौते के लिए।
जो भूलकर सब कुछ
तुम्हारे साथ हो जाए।।

कसम से हम बहुत दर्द को
जीवन में झेल चुके है।
अब कुछ खुशीयो के पल
तुम्हारे साथ हम बिताये।
और जमाने को हम अपनी
मोहब्बत करके दिखलाये।
और अपने दुख दर्दो से
सदा ही मुक्ति हो जाये।।

सभालकर अब तुम रहना
इन जमाने वालो से प्रिये।
बहुत बेजुवान होते है
शरीफ कहे जाने वाले।
लगा देते है चिंगारी
बसे बसाये घरों में।
और उड़े रहते है सदा
शराफत का ये चोला।।

जय जिनेंद्र देव
संजय जैन (मुंबई)

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डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

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