नीरज त्यागीग़ाज़ियाबाद ( उत्तर प्रदेश )
Read Time1 Minute, 0 Second
कभी शौर सा था उस खिड़की पर,
जहाँ आज सन्नाटा सा पसरा है ।
वो अलमारी आज मौन सी खड़ी है ,
जिनमे कभी बड़ी बहन और बड़े भाई
की किताबो से रोज मेरी किताबो की
उन्हें जगह ना देने की लड़ाई सी रहती थी।
वो दोस्त भी भी अब सब बिछड़ गए है,
जिनसे आगे रहने के लिए चोरी छुपकर
पढ़कर भी उनसे ये कह दिया करते थे,
ये तो आने वाला ही नही है परीक्षा में।
जीवन की भागदौड़ में आगे बढ़ने की
हौड़ में,सारे रिश्ते छूट गए,जो हो सकते
दोस्त करीब वो दोस्त भी सारे छूट गए।
आज ना वो किताबे है,ना ही अलमारी
में कोई शौर है,हर कोना अब मौन है ।
हाँ सचमुच आज मैं बहुत खुश हूँ।
क्या सचमुच यही खुशी है?????
Average Rating
5 Star
0%
4 Star
0%
3 Star
0%
2 Star
0%
1 Star
0%
पसंदीदा साहित्य
-
August 11, 2017
विचलित मन
-
July 21, 2019
शिव
-
April 7, 2023
डॉ. वेदप्रताप वैदिक को श्रद्धांजलि
-
July 29, 2019
यमुना किनारा
-
January 16, 2018
पतंग हूं…