अब न वो दर्द, न वो दिल, न वो दीवाने हैंअब न वो साज, न वो सोज, न वो गाने हैंसाकी! अब भी यहां तू किसके लिए बैठा हैअब न वो जाम, न वो मय, न वो पैमाने हैं-नीरजक्या कहूँ! निःशब्द हूं।लगभग विचारशून्य-सी।क्या लिखूं।एक नन्ही कलम कैसे लिख पाएगी उस […]
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‘रसानुभूति’ द्वारा परिचर्चा आयोजितइंदौर। रस छन्द, अलंकार, अभिव्यंजना, बिम्ब विधान के अतिरिक्त राई में सागर उतर आया! सही मायने में छहढाला अध्यात्म, नीति और मौलिकता का प्रबन्ध काव्य है। ये उद्गार दिल्ली के डॉ. वीरसागर जैन ने सर्वोदय अहिंसा ट्रस्ट एवं मातृभाषा उन्नयन संस्थान द्वारा आयोजित जैन साहित्यकारों के […]
