मैं तनहा होता जाता हूँ,खुद पर रोता जाता हूँ, मैं संस्कार का वृक्ष हूँ, खुद को ढोता जाता हूँ। कुछ हवा विषैली है आई,लोगों की मति है भरमाई, कुछ पाश्चात्य का दोष है,कुछ मुझसे भी इन्हें रोष है। मैं मर्यादा का पोषक हूँ,निज संस्कृति का उदघोषक हूँ, मैं आत्मशक्ति का साधक हूँ,मन […]
