पुलकित कंपित चातक गाये ! गुंजित बादल विपुला छाये !! उमड़ घुमड़ कर अंबर घेरा ! श्यामल गर्वित रूप घनेरा ! अम्बुद घोर हुआ अंधेरा ! दमक दामिनी डाला डेरा ! गगरी प्रेम सुधा भर लाये ! गुंजित बादल विपुला छाये !! चिर संचित चित चंचल छाया ! मन मंगल […]
अग्नि ,मधु विधा ,सामोपासना,प्राणोपासना के द्वारा अतिइन्द्रिय ग्राह्य को इन्द्रिय ग्राह्य बनाने की चेष्टा मानव के जीवन की सबसे बड़ी अभिलाषा रही है इसी कारण ब्रह्म की निराकारिता को खंडित किये बिना तादात्म्य स्थापित करने की गूढ आत्मीय चेतना का रहस्यमयी आभास रसानुभूति है! यह दशा मानवता की उच्चस्तरीय सीढ़ी […]
