मन में बसंत लिए,प्रेम की तरंग लिए, रोम-रोम देह का,श्रृंगार गीत गा रहा। हिय में छुपा हुआ था,बेसुध मन मयूर, नृत्य करने तीव्रता से,अब मचल रहा। कोयल भी गाने लगी,बाग़ महकाने लगी, आम भी वृक्ष में आने को है,ललचा रहा। उड़ रही अब धूल,खिल गए टेसू फूल, रंगों का त्यौहार,समीप […]