बच्चों के साथ, बच्चा बनना.. कितना अच्छा, लगता है। समय पता, नहीं चलता.. दिन ऐसे, निकल जाता है.. जैसे बच्चा, एक-एक पाँव.. चलता है। धूप-छाँव, चलता है.. समय आगे, निकल जाता है.. परछाई पीछे, छूटती है. लंबी होकर। हम इस समय को, कभी पकड़ नहीं पाते. लंबी परछाईयाँ, ओझल हो […]
बहुत-सी बातें कहती दिनभर, फिर भी अनकही सी रह जाती.. गृहस्थी की चिंगारियों को अपने आंचल से ढँककर छुपाती, खुद अस्त-व्यस्त होकर भी.. सबकी जिंदगी मे रंग भरती.. अंदर-ही-अंदर धधकती, मुंह पर झूठी मुस्कान बिखेरती.. ये सुप्त ज्वालामुखी-सी औरतें….। लीपे-पुते चेहरे से झाँकती, उदासी की लकीरें दबा नहीं पाती.. प्याले […]