उम्र यूँ रेत-सी फिसलती रही, लाख बंदिशों के बावजूद बिखरती रही। ना मुकाम पाया ,ना मुकाम का कोई निशां, जिन्दगी तो मेरी राह में निकलती रही …l अरमां थे कि ख्वाबों का बनाएँगे आशियाना, जोड़ने लगा मैं तिनके –तिनके,चुन –चुन के मगर आँधियाँ मुझसे होकर फिर गुजरती रही। […]
धर्मदर्शन
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