रंग दिखलाऊँ अब कौन-सा, दर्शाएगा जो मेरी छवि को.. भड़कीला ज्यादा ना लगे जो भा जाए हर एक किसी कोl . रंग कहूँ सूरज-सा मुझको, भाता है रातों में तो क्या.. कहूँ जो धोया काला रंग, दौड़ता है दिन में तो क्याl . सच तो है एक रेखा पीली-सी, भाती […]
काव्यभाषा
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