चींटी एक चढ़ी पर्वत पे, गुस्से से होकर के लाल। हाथी आज नहीं बच पाए, बनके आई मानो काल।। कुल मेटू तेरे मैं सारो, कोऊ आज नहीं बच पाय। बहुत सितम झेले हैं अब तक, आज सभी लूंगी भरपाय।। कुल का नाश किया मेरे का, रौंद पैर के नीचे हाय। […]
काव्यभाषा
काव्यभाषा
राष्ट्र-प्रेम का प्रदीप, सदैव दीप्तिमान हो। विश्व-ऐक्य-भाव ही, सर्वथा प्रधान हो।। कोटिशः नमन तुम्हें, धीर वीर महान हो। त्याग शान्ति समृद्धि के, तुम्हीं तो वितान हो।। शुष्क हृदय न हो कभी, प्रेम प्रवाहमान हो। कर तिरोहित वैरभाव, अधर मात्र मुस्कान हो।। है एक प्राण दाता पूज्य, सर्व-धर्म समान हो। मनुज […]