खोयी हुई आत्मा टटोल रही है मर्म खाली पड़ी हुई कविता के जिस्म में जाने हेतु जहाँ पर श्रृंगार, वीर ,करुणा तमाम रस आतुर हो यमक,श्लेष,अलंकार से मिलने के लिए। इन सबसे तैयार कविता निकली हो, किसी हिम,समुद्र की गहराइयों में गोते लगाने हेतु किसी प्रेमिका की नथनी बन तो […]
काव्यभाषा
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