रहे पल्लवित-पुष्पित यह, राष्ट्र जीवन की फुलवारी। विविध प्रान्त हैं सुमन मनोहर, खुशबू है सबकी न्यारी॥ भाषाएँ कई रम्य मनोरम, बोलियाँ कई यहाँ अनुपम। छह रितुएँ धर्म सात संग, है कहीं नहीं ऐसा दम-खम॥ फूटी सभ्यता किरण यहीं, जगे हम फिर जगत जागा। धर्म ज्ञान विज्ञान कला में, नित बढ़ते […]