ठूँठ बसंत हुआ। पुण्य अनन्त हुआ। कथ्य यहाँ का। शिल्प वहां का। दर्शन ठूँसा, कहाँ कहाँ का। दो-कौड़ी की कविता लिखकर तुक्कड़ पंत हुआ। साठ-गाँठ तिकड़म से यारी खुद को कहता है अवतारी लूट, सती की लज्जा चुरकट यूँ जय वन्त हुआ। इधर-उधर का लूटा-पाटा इसको छाँटा उसको काटा। दान […]
काव्यभाषा
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