वो ज़िंदगी 

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mangal sinh
वो ज़िंदगी में काश दुबारा मिले कभी
जैसे कि टूट कर के सितारा मिले कभी
उम्मीद जागती है जो ये दिल में बारहा
मौजे रवाँ है इसको किनारा मिले कभी
बैठा है इंतिजार में मूरत बना कोई
तरसी नज़र को ऐसा नज़ारा मिले कभी
आख़िर मैं कब तलक यूँ खुदा को मना करूँ
निकले ये जाँ तेरा जो इशारा मिले कभी
करता हलाक है बड़ी मासूमियत से पर
इस हुस्न को कुछ और मुदारा मिले कभी
ग़ैरों की साज़िशी का न होगा गिला कोई
बस ये न हो कि काम तुम्हारा मिले कभी
ख़ूं जो पिया सो पी लिया इस हुक्मरान ने
ऐसा न हो कि सर भी उतारा मिले कभी
#मंगल सिंह ‘नाचीज़’
परिचय :

नाम- मंगल सिंह 

*साहित्यिक उपनाम-  ‘नाचीज़’
*वर्तमान पता- हनुमानगढ़,
*राज्य-राजस्थान 
*शहर- संगरिया 
*शिक्षा- MA(English),MA(Political Science),B.Ed.
*कार्यक्षेत्र- वरिष्ठ अध्यापक (राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय,न्यौलखी,हनुमानगढ)
* विधा- ग़ज़ल, कविता, कहानी 
*अन्य उपलब्धियाँ- मुशायरों में शिरकत 
*लेखन का उद्देश्य- सामाजिक समरसता को बढ़ावा देना व साहित्य की सेवा करना

Arpan Jain

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14 thoughts on “वो ज़िंदगी 

  1. Mst bhai ji cha gye aur Aap yu hi jindagi k safar me yu hi aage bdte rho sfalta yu hi saflta milti rhe yhi dua krta hu god se

  2. आदरणीय भाई साहब एक बेहद संजीदा भावनाओं को समझने वाले एवं सहयोगात्‍मक रवैये से युक्‍त व्‍यक्तित्‍व के धनी हैं। उन्‍हें अन्‍तःकरण से मेरा प्रणाम शुभापेक्षा है कि वे मेरा प्रणाम स्‍वीकार करेंगे।

  3. सलाम सुनील भाई
    तवज्जह देने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया

  4. बहुत-बहुत शुक्रिया अनिल भाई

    अच्छे लोगों को सभी अच्छे दिखाई देते हैं। आप जैसा दोस्त पाकर मैं धन्य हुआ।

  5. बहुत-बहुत शुक्रिया सुरेन्द्र भाई

  6. बहुत-बहुत शुक्रिया सुरेन्द्र भाई साहब
    तवज्जह देने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया

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